शीतला अष्टमी का व्रत पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन इसका खास महत्व उत्तर और मध्य भारत में है। महिलाएं इस अवसर पर एक दिन पहले से ही भोजन तैयार कर लेती हैं। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में माता की पूजा के बाद तैयार भोजन का भोग अर्पित किया जाता है, और फिर पूरा परिवार दिनभर उसी का सेवन करता है।

HighLights
- स्वास्थ्य की कामना के साथ मनाया जाता है व्रत
- महिलाएं इस दिन व्रत रखकर शीतला माता की पूजा करती हैं
- रोगों से मुक्ति की प्रार्थना की जाती है
धर्म डेस्क, इंदौर: होली के आठवें दिन शीतला अष्टमी का व्रत 22 मार्च, शनिवार को मनाया जाएगा। शीतला माता की पूजा से स्वास्थ्य का वरदान मिलता है। इसे बसौड़ा भी कहा जाता है।
मान्यता है कि इस दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता है। बसौड़ा की पूर्व संध्या पर बनाए गए भोजन को ही माता शीतला को मीठे चावल, दही, और पूड़ी-हलवे का भोग लगाकर ग्रहण किया जाता है।
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गर्मी की शुरुआत का प्रतीक
- ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा के अनुसार, यह त्योहार हर साल चैत्र माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस दिन शीतला माता की पूजा होती है, जिसे बासोड़ा भी कहते हैं।
- इस दिन माता को बासी भोजन का भोग चढ़ाया जाता है और वही खाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि माता रानी की विधिवत पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह व्रत गर्मियों की शुरुआत का प्रतीक है।
- इस दिन माता रानी की पूजा और उपवास से रोग-दोष से मुक्ति मिलने की भी मान्यता है।
कैसे मिलेगा आरोग्य का वरदान
शीतला अष्टमी पर अच्छी सेहत के लिए विधि-विधान से माता शीतला की पूजा करें। मां को कुमकुम, रोली, अक्षत और लाल रंग के फूल अर्पित करें। इसके बाद देवी को बासी पूड़ी-हलवे का भोग लगाएं। ऐसा करने से रोग-दोष से मुक्ति मिलेगी और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा।