मध्य प्रदेश के दमोह में एक नकली कार्डियोलॉजिस्ट के इलाज के कारण सात व्यक्तियों की मृत्यु हो गई। डॉक्टर नरेंद्र यादव उर्फ एनकेम जोन और उनकी पत्नी पर कई आपराधिक मामले पहले से ही दर्ज हैं। जांच में यह स्पष्ट हुआ कि डॉक्टर की डिग्री फर्जी थी और यह किसी महिला के नाम पर थी।

HighLights
- नकली कार्डियोलॉजिस्ट के खिलाफ जांच और कार्रवाई की जाएगी।
- डॉक्टर और उसकी पत्नी पर पहले भी मामले दर्ज हो चुके हैं।
- जांच में उसकी डिग्रियां किसी महिला के नाम पर मिली हैं।
Newsstate24 प्रतिनिधि, दमोह। दमोह शहर के मिशन अस्पताल में उपचार के बाद सात मौतों के मामले में, गायब डॉक्टर नरेंद्र यादव उर्फ एनकेम जोन और उसकी पत्नी पर पहले से कई आपराधिक मामले दर्ज होने की जानकारी सामने आई है।
सीएमएचओ मुकेश जैन देर रात कोतवाली पहुँचे और अपनी शिकायत दर्ज कराई। सूत्रों के अनुसार, स्वास्थ्य विभाग की जांच में यह पाया गया कि डॉक्टर की डिग्री असली नहीं है और ये डिग्रियां किसी महिला के नाम पर थीं।
देर रात एक बजे तक पुलिस मामले की जांच कर रही थी। अभी तक एफआईआर दर्ज नहीं हो पाई थी। वहीं, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो ने एक्स पर जानकारी साझा की है कि सीएमएचओ जवाबदेही से बचने के लिए रात को कोतवाली पहुंचे।
नरेन्द्र जान केम नाम बताया
डॉक्टर के आधार कार्ड के अनुसार उसका नाम नरेंद्र जान केम है और उसके पिता का नाम अमरेंद्र कुमार है, जो उत्तराखंड के देहरादून के निवासी हैं। दमोह में यह डॉक्टर गुजरात में पंजीकृत वाहन का उपयोग कर रहा था।
इस डॉक्टर और उसकी पत्नी दिव्या रावत पर वर्ष 2019 में तेलंगाना के रचकोंडा में ब्राउंडवाल्ड हॉस्पिटल में धोखाधड़ी के मामले में कार्रवाई की गई थी। उस समय वह अस्पताल के चेयरमैन के पद पर थे।
यह जानकारी भी सामने आई है कि यह कई निजी और सरकारी संस्थाओं में ईमेल के माध्यम से अपना बायोडाटा भेजकर संस्थानों में घुसने की कोशिश करते थे और चिकित्सा क्षेत्र में आधुनिक सुविधाएं लाने का झांसा भी देते थे। डॉक्टर के विजिटिंग कार्ड में भी वह खुद को वरिष्ठ सलाहकार इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट और इलेक्ट्रोफिजियोलाजिस्ट बताते थे और जर्मनी के निवासी होने का दावा करते थे।
आज आएगी मानवाधिकार आयोग की टीम
सात मरीजों की मौत के मामले में सोमवार को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की दो सदस्यीय टीम जांच के लिए दमोह आएगी। दूसरी ओर, इस मामले में प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि फरवरी में पीड़ित परिवारों द्वारा शिकायत दर्ज कराई गई थी।
इसकी जांच और रिपोर्ट के बाद कार्रवाई के इंतजार में मामला अटका रहा, और जब यह शिकायत राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग तक पहुंची, तब इस मामले को गंभीरता से लिया गया।