### होली 2025: एक अद्भुत पर्व की कहानी
**होली**, सनातन धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जो रंगों और उमंगों का प्रतीक है। इस पर्व के साथ कई लोक कथाएं जुड़ी हुई हैं, जिनका शास्त्रों में कोई आधिकारिक उल्लेख नहीं मिलता। आमतौर पर, होली को प्रहलाद और होलिका की कथा से जोड़ा जाता है, जिसे जलाने की प्रक्रिया के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।
हालांकि, नारद पुराण में होली का एक संक्षिप्त उल्लेख मिलता है, जिसमें कहा गया है कि “होलिका प्रहलाद को भय देने वाली राक्षसी थी।” लेकिन किसी भी शास्त्र में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि प्रहलाद ने होलिका को जीवित जलाया या वह किसी विशेष जाति से थी। ये सब बातें समय के साथ हमारी परंपराओं में समाहित हो गई हैं।
### होली का वास्तविक उद्देश्य
हमें भविष्य पुराण के अनुसार होली मनाने का सही कारण जानने का प्रयास करना चाहिए। उत्तर पर्व 132 के अनुसार, महाराज युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि फाल्गुन पूर्णिमा को उत्सव क्यों मनाया जाता है। उन्होंने यह भी पूछा कि बच्चे घर-घर में शोर क्यों मचाते हैं और ‘अडाडा’ का अर्थ क्या है।
भगवान कृष्ण ने बताया कि सत्ययुग में रघु नामक एक राजा थे, जिन्होंने समस्त पृथ्वी पर विजय प्राप्त की और अपने प्रजा का भली-भांति पालन किया। उनके राज्य में कभी भी दुर्भिक्ष नहीं हुआ और न ही किसी की अकाल मृत्यु हुई। लेकिन एक दिन नागरिकों ने राजद्वार पर इकट्ठा होकर ‘त्राहि, त्राहि’ की पुकार लगाई।
### राक्षसी ढोंढा का अंत
नागरिकों ने राजा से शिकायत की कि एक राक्षसी, ढोंढा, उनके बच्चों को पीड़ा देती है और उस पर कोई मंत्र, तंत्र या औषधि असर नहीं कर पाती। राजा ने पुरोहित महर्षि वसिष्ठ से इस बारे में जानकारी ली। वसिष्ठ ने बताया कि ढोंढा नामक राक्षसी अपने कठोर तप से भगवान शिव को प्रसन्न कर चुकी थी।
भगवान शिव ने उसे यह वरदान दिया था कि देवता, दैत्य और मनुष्य उसे नहीं मार सकेंगे, लेकिन उसे उन्मत्त बच्चों से भय रहेगा। इस प्रकार, भगवान शिव के वचन के अनुसार, ढोंढा बच्चों को परेशान करती रही। ‘अडाडा’ मंत्र का उच्चारण करते ही वह शांत हो जाती थी।
### होली का उत्सव मनाने का तरीका
फाल्गुन पूर्णिमा को सभी को निडर होकर खेलने, नाचने और गाने का आनंद लेना चाहिए। बच्चे लकड़ियों से बनी तलवारें लेकर उत्साह से युद्ध के लिए दौड़ें। सूखी लकड़ी, उपले और सूखी पत्तियों का ढेर बनाकर हवन करें और उस जलते ढेर के चारों ओर परिक्रमा करें। इस प्रकार, राक्षसी ढोंढा का निवारण हो जाता है।
राजा रघु ने इस पर्व के महत्व को समझते हुए सभी को इसी प्रकार उत्सव मनाने का निर्देश दिया, जिससे ढोंढा का अंत हुआ। इस दिन से ढोंढा का उत्सव मनाया जाने लगा और ‘अडाडा’ की परंपरा शुरू हुई।
### होली के दूसरे दिन क्या करें?
भगवान कृष्ण ने बताया कि होली के दूसरे दिन, प्रातः उठकर पितरों और देवताओं का तर्पण करना चाहिए। इसके बाद, घर के आँगन को गोबर से लीपकर रंगीन अक्षतों से सजाएं और पूजा करें। सौभाग्यवती महिलाओं को सुंदर वस्त्र पहनाकर पूजा करनी चाहिए।
इस दिन की खासियत यह है कि फाल्गुन उत्सव मनाने से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं और सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं। यह दिन सभी तिथियों में श्रेष्ठ है और सभी विघ्नों को समाप्त करने वाला है।
### निष्कर्ष
इस प्रकार, हमें यह समझ में आता है कि होली का कोई भी प्रसंग “प्रहलाद ने होलिका जिंदा जलाया” से संबंधित नहीं है। यह एक जन चेतना का पर्व है, जो ऋतु परिवर्तन और सामाजिक सौहार्द का प्रतीक है।
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