टेस्ला भारत में अगले महीने से कारों की बिक्री शुरू करने जा रही है। कंपनी वर्तमान में कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग के विकल्प पर विचार कर रही है, लेकिन गीगाफैक्टरी लगाना अधिक आर्थिक रूप से फायदेमंद साबित हो सकता है। भारत में श्रम लागत और उत्पादन लागत अपेक्षाकृत कम होगी। टेस्ला की कारें अब तक चीन, जर्मनी []
Published: Wednesday, 2 April 2025 at 03:02 am | Modified: Thursday, 3 April 2025 at 09:29 am | By: Kapil Sharma | 📂 Category: ऑटो
टेस्ला भारत में अगले महीने से कारों की बिक्री शुरू करने जा रही है। कंपनी वर्तमान में कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग के विकल्प पर विचार कर रही है, लेकिन गीगाफैक्टरी लगाना अधिक आर्थिक रूप से फायदेमंद साबित हो सकता है। भारत में श्रम लागत और उत्पादन लागत अपेक्षाकृत कम होगी।
टेस्ला की कारें अब तक चीन, जर्मनी और अमेरिका में बनाई जाती रही हैं।
भारत में टेस्ला की कारों की बिक्री अगले महीने से शुरू हो सकती है। अभी कंपनी कारों का आयात करेगी, लेकिन जल्द ही उसे अपने वाहनों का निर्माण भारत में भी करना होगा। यदि वह ऐसा नहीं करती है, तो उसे सस्ती कीमत पर कारें आयात करने में कठिनाई होगी। यदि टेस्ला भारत में अपनी फैक्टरी स्थापित करती है, तो यह उसके लिए कितनी किफायती साबित होगी, यह एक महत्वपूर्ण सवाल है।
भारत में मौजूद सभी ऑटोमोबाइल कंपनियों की कुल उत्पादन क्षमता सालाना 62 लाख कारों की है, लेकिन वर्तमान में केवल 75 प्रतिशत उत्पादन ही हो पाता है। ऐसे में टेस्ला, जो कि एलन मस्क के नेतृत्व में है, शुरुआत में शेष 25 प्रतिशत क्षमता का उपयोग करने के लिए कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग के विकल्प की तलाश कर रही है। हालांकि, अगर वह भारत में गीगाफैक्टरी लगाती है, तो यह उसके लिए अधिक लाभकारी हो सकता है।
टेस्ला की दुनिया में मौजूदा 5 गीगाफैक्टरी हैं, जिनमें से 3 अमेरिका में, 1 जर्मनी में और 1 चीन में स्थित हैं। कंपनी मेक्सिको में भी एक गीगाफैक्टरी लगाने की योजना बना रही है। खबरों के अनुसार, यदि टेस्ला भारत में सालाना 5 लाख यूनिट उत्पादन करने वाली गीगाफैक्टरी स्थापित करती है, तो इसकी लागत अमेरिका और जर्मनी की तुलना में बहुत कम होगी। उदाहरण के लिए, यदि यह जर्मनी के बर्लिन में स्थापित होती है, तो इसकी लागत 5 अरब डॉलर होगी, जबकि अमेरिका के टेक्सास में यह 7 अरब डॉलर तक जाएगी। जबकि भारत में इसकी लागत केवल 2 से 3 अरब डॉलर होगी।
कंपनी की बचत केवल फैक्टरी की लागत में ही नहीं होगी, बल्कि श्रम लागत में भी होगी। भारत में श्रम लागत 2 से 5 डॉलर प्रति घंटा होगी, जबकि अमेरिका में यह 36 डॉलर और जर्मनी में 45 डॉलर प्रति घंटे तक पहुंच सकती है। इसके अलावा, अगर कंपनी भारत में कारें बनाती है, तो उसे सप्लाई चेन का लाभ, बड़े उपभोक्ता बाजार का लाभ और सरकार से कुछ वर्षों के लिए टैक्स में छूट भी मिल सकती है।
हालांकि, यदि टेस्ला कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग का विकल्प चुनता है, तो उसे कई नुकसानों का सामना करना पड़ सकता है। इससे उसकी सप्लाई चेन पर नियंत्रण नहीं रहेगा और डिलीवरी टाइमलाइन प्रभावित होगी। साथ ही, इसके कारण उसकी लागत भी बढ़ सकती है। यदि भविष्य में वह फैक्टरी लगाना चाहती है, तो उसे नए सिरे से शुरुआत करनी होगी।