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बुद्ध, जैन और सिख जैसे अल्पसंख्यक समुदायों के वैवाहिक विवादों का समाधान हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत होता आ रहा है। एडवोकेट खंडेलवाल ने हिंदू विवाह विधि मान्य अधिनियम 1949 का उल्लेख करते हुए कहा कि इस अधिनियम में जैनों को पहले से ही हिंदू की परिभाषा में शामिल किया गया है। अदालत ने सभी तर्कों को सुनने के बाद अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया है।

HighLights
- याचिकाकर्ता ने कहा कि हिंदू विवाह विधि मान्य अधिनियम में हिंदू की परिभाषा में जैन भी शामिल हैं।
- यह ध्यान देने योग्य है कि पूरे देश में वर्ष 2014 में जैन समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित किया गया था।
- इसके बाद से जैन दंपत्तियों के विवादों का निवारण हिंदू विवाह अधिनियम के तहत होता रहा है।
Newsstate24 प्रतिनिधि, इंदौर। जैन समाज के वैवाहिक विवादों का समाधान हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत किया जा सकता है या नहीं, इस पर मंगलवार को हाई कोर्ट में बहस समाप्त हो गई। पक्षकारों के तर्क सुनने के बाद अदालत ने अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया है। इसके बाद यह स्पष्ट होगा कि जैन समुदाय के सदस्य वैवाहिक विवादों के समाधान के लिए हिंदू विवाह अधिनियम के तहत याचिका दायर कर सकते हैं या नहीं। इस बहस का समय लगभग आधा घंटा रहा।
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याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि हिंदू विवाह विधि मान्य अधिनियम 1949 में हिंदू की परिभाषा में जैनों को भी शामिल किया गया है। संविधान में भी जैन धर्मावलंबियों को हिंदू के रूप में मान्यता दी गई है। वर्ष 2014 में जैन समाज को अल्पसंख्यक का दर्जा मिला था। तब से अब तक जैन दंपत्तियों के विवाद हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत सुलझाए जा चुके हैं। कई मामलों का निपटारा सुप्रीम कोर्ट भी कर चुका है।
- इंदौर के कुटुंब न्यायालय ने हाल ही में जैन समुदाय के पक्षकारों की विवाह-विच्छेद की याचिकाएं यह कहते हुए खारिज कर दी थीं कि केंद्र सरकार द्वारा जैन समाज को अल्पसंख्यक समुदाय मान्यता दी गई है।
- 27 जनवरी 2014 को इस संदर्भ में एक राजपत्र भी जारी किया गया था। ऐसे में जैन समाज के अनुयायियों को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत अनुदान प्राप्त करने का अधिकार नहीं है।
- वे हिंदू धर्म की मूलभूत वैदिक मान्यताओं को अस्वीकार करते हैं और स्वयं को बहुसंख्यक हिंदू समुदाय से अलग कर चुके हैं।
- उनसे जुड़े वैवाहिक मामलों का समाधान हिंदू विवाह अधिनियम के तहत नहीं किया जा सकता। कुटुंब न्यायालय के इस निर्णय को चुनौती देते हुए पक्षकारों ने हाई कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं।
- मंगलवार को पक्षकार के पक्ष में एडवोकेट पंकज खंडेलवाल ने अदालत में तर्क प्रस्तुत किया कि संविधान में हिंदू की परिभाषा में जैन भी आते हैं।
- हिंदू उत्तराधिकारी अधिनियम में भी हिंदू की परिभाषा में जैन धर्मावलंबियों को शामिल किया गया है।
न्यायमित्र की रिपोर्ट नहीं आई
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता एके सेठी को इस मामले में न्यायमित्र नियुक्त किया था और उनसे कहा था कि वे मामले का अध्ययन कर अपनी राय दें। मंगलवार को उन्हें अपनी राय अदालत के समक्ष प्रस्तुत करनी थी, लेकिन वे उपस्थित नहीं हो सके।