गर्भावस्था का बायोलॉजिकल उम्र पर प्रभाव अत्यंत दिलचस्प है। शोध दर्शाते हैं कि प्रसव के दौरान होने वाले अनुभवों का सीधा असर महिला की जैविक उम्र पर होता है। सेल मेटाबॉलिज्म और नेचर में प्रकाशित अनुसंधान से यह स्पष्ट हुआ है कि स्तनपान कराने वाली महिलाओं में यह असर तेजी से देखा गया है।
एक अध्ययन में, यह पाया गया कि गर्भावस्था के पहले 20 हफ्तों के दौरान आनुवंशिक बायोमार्कर में लगभग एक से दो वर्ष की वृद्धि हुई। इसके अतिरिक्त, अधिकतर अध्ययनों में यह भी दिखाया गया है कि माता-पिता की मानसिकता और तनाव का असर उनके बच्चे पर पड़ता है। अधिकांश अध्ययनों में पिता का समावेश नहीं होता, क्योंकि वे शारीरिक रूप से गर्भधारण नहीं करते। लेकिन एक अध्ययन में 17,000 से अधिक पुरुषों ने भाग लिया, जिससे यह निष्कर्ष निकला कि बच्चे के जन्म और पालन-पोषण का उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
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हालांकि, गर्भावस्था का जैविक उम्र पर प्रभाव प्रसव के बाद उल्टा दिखाई देता है। जन्म के तीन महीने बाद किए गए रक्त परीक्षणों से यह पाया गया कि जैविक उम्र पहले की तुलना में कम हो गई थी। एक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि प्रसव के तीन महीने बाद उम्र बढ़ने की गति 16% कम हो गई।
स्तनपान कराने वाली महिलाओं में जैविक उम्र में अधिक कमी देखी गई, जबकि जो महिलाएं फॉर्मूला दूध का उपयोग करती थीं, उनमें ऐसा कम पाया गया। इसके अलावा, गर्भावस्था से पहले जिन महिलाओं का वजन अधिक था, उनमें यह प्रभाव तुलनात्मक रूप से कम दिखाई दिया, जबकि जिनका वजन कम था, उन पर इसका अधिक प्रभाव पड़ा।
गर्भावस्था के दौरान शरीर में हार्मोनल परिवर्तन होते हैं, जिससे कुछ लोगों का वजन अत्यधिक बढ़ सकता है, वहीं कुछ का वजन घट भी सकता है। इस प्रकार, गर्भावस्था का प्रभाव न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी महत्वपूर्ण होता है।