समय के साथ बदलावों में होलिका दहन के लिए लकड़ियों का उपयोग बढ़ गया है, लेकिन ज्योतिषाचार्य इसे उचित नहीं मानते। उनका कहना है कि यह वैज्ञानिक दृष्टि से गलत है और पर्यावरण के लिए भी हानिकारक है। ज्योतिषाचार्यों का स्पष्ट मत है कि प्राचीन काल से होलिका दहन गाय के गोबर से बने उपलों या गुलरियों से किया जाता रहा है।
HighLights
- गाय के गोबर से होलिका दहन ही शास्त्र अनुसार है।
- पेड़ काटकर होलिका दहन करना अनुचित और अधर्म है।
- गाय के गोबर को पंचद्रव्य माना गया है।
नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। होलिका दहन 13 मार्च, गुरुवार को होगा। क्या गाय के गोबर के उपलों (कंडो) से होलिका दहन करना शास्त्र सम्मत है? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए ग्वालियर के प्रमुख ज्योतिष विद्वानों से नईदुनिया ने चर्चा की।
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ज्योतिष विद्वान् बताते हैं कि हमारे शास्त्रों में प्रकृति के संरक्षण का विशेष महत्व है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की पूजा कर पर्यावरण की रक्षा का संदेश दिया था।
उनका मानना है कि लकड़ियों का उपयोग कर होलिका दहन करना न केवल अनुचित है, बल्कि अधर्म भी है। शास्त्रों में हवन-पूजन का कार्य गाय के गोबर से बने उपलों से करने का विधान है, जिससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
प्राचीनकाल से होलिका दहन गाय के गोबर के उपलों और गुलरियों से होता आया है। लेकिन अब गांवों की बड़ी होली की प्रतिस्पर्धा के कारण लकड़ियों का उपयोग बढ़ गया है, जो कि अनुचित है।
गोबर के उपलों से ही होलिका दहन करना शास्त्र सम्मत है
- ज्योतिष विद्वान् डॉ. दीपक गोस्वामी के अनुसार, सनातन धर्म में गाय के गोबर को पवित्र माना गया है। सभी धार्मिक कार्यों में गाय के गोबर का उपयोग किया जाता है। इसे पंचद्रव्य कहा गया है।
- होलिका दहन सदियों से गाय के गोबर से बने उपलों और गुलरियों से किया जाता रहा है। सात दिन पहले होलकाष्टक लगने पर परिवार की महिलाएं गाय का गोबर इकट्ठा कर होलिका दहन के लिए गुलरी बनाना शुरू कर देती थीं।
- सात दिन में गुलरी सूख जाती थी और होली जलाने के लिए उसे माला के रूप में तैयार किया जाता था। गाय के गोबर के उपलों से होलिका दहन करना ही शास्त्र सम्मत है।
- पं. संजय वैदिक ज्योतिषाचार्य का कहना है कि गोबर के उपलों से होलिका दहन करना न केवल पर्यावरण की दृष्टि से उचित है, बल्कि शास्त्रों में भी यही विधान है।
- गाय के गोबर से बने उपलों से हवन-पूजन करने से वातावरण शुद्ध होता है। इसलिए होलिका दहन लकड़ियों की जगह कंडों से किया जाना चाहिए।
- जब श्रीराम चौदह वर्ष के वनवास पर गए, तब भरत जी ने संकल्प लिया था कि वे गाय के गोबर से बने उपलों का सेवन करेंगे। गाय का पंचद्रव्य भी पवित्र माना गया है।
- पर्यावरण की रक्षा और वृक्षों की सुरक्षा के लिए कंडों से होलिका दहन करना चाहिए। इससे देवी-देवता भी प्रसन्न होंगे और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देंगे।
वातावरण के बैक्टीरिया का नाश होता है
पं. संजय जी वैदिक ज्योतिषाचार्य के अनुसार, यह मान्यता है कि गाय के पिछले हिस्से को यम का स्थान माना जाता है और गाय का गोबर वहीं से प्राप्त होता है। होलिका दहन में इसका उपयोग करने से कुंडली में अकाल मृत्यु या अन्य बीमारियों से संबंधित दोष समाप्त हो जाते हैं। इसी कारण पूजा-पाठ में भी गोबर के उपलों का प्रयोग होता है।
गोबर के उपलों को जलाने से घर में माता लक्ष्मी का वास होता है और होलिका की अग्नि में जब इन्हें जलाया जाता है, तो रोग-दोष से मुक्ति मिलती है और आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
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उपले जलाने से ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है, जिससे वातावरण शुद्ध होता है और सभी बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति लगातार किसी बीमारी से ग्रस्त है, तो होली के जलाए हुए उपलों की राख को उसके सोने के स्थान पर छिड़कने से लाभ मिल सकता है।