काशी हिंदू विश्वविद्यालय के दर्शन और धर्म विभाग के शोधार्थी, डॉ. सौरभ राय ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। गाजीपुर के निवासी डॉ. राय वर्तमान में प्रो. सतीश चंद्र दुबे के मार्गदर्शन में पोस्ट डॉक्टरल शोध कर रहे हैं। हाल ही में, उन्होंने दिल्ली स्थित प्रधानमंत्री संग्रहालय में शिक्षा मंत्रालय और इंडियन काउंसिल ऑफ फिलोसॉफिकल रिसर्च द्वारा आयोजित फेलो मीट में अपने शोध को प्रस्तुत किया।
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उनके शोध का विषय ‘दार्शनिक राजा और राम राज्य की अवधारणा’ था, जिसमें उन्होंने विशेष रूप से वाल्मीकि रामायण का उल्लेख किया। डॉ. राय ने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत वाल्मीकि रामायण के एक प्रमुख श्लोक ‘सत्यमेकपदं ब्रह्म सत्ये धर्म: प्रतिष्ठित:’ से की। उन्होंने बताया कि भारत भूमि अपनी अनोखी सभ्यता, संस्कृति और साहित्य के लिए विश्व में प्रसिद्ध है। यहां के ऋषि-मुनियों ने अपने तप के अनुभवों को अपनी रचनाओं में समाहित किया है।
डॉ. राय ने रामायण को मानव मूल्यों और नैतिक आदर्शों का प्रशस्ति पत्र बताया। उनके अनुसार, यह ग्रंथ भारतीय समाज के जीवन और चिंतन के साथ गहरे से जुड़ा हुआ है। इसमें त्याग, तपस्या, पराक्रम, और कर्तव्य की प्रेरणा मिलती है। महर्षि वाल्मीकि की भविष्यवाणी के अनुसार, जब तक धरती पर पर्वत और नदियां रहेंगी, तब तक रामायण की कथा जनमानस में जीवित रहेगी।