भारतीय वायुसेना: आने वाले समय में भारतीय वायुसेना के सामने चुनौतियाँ बढ़ सकती हैं। अगले 10 वर्षों में इसकी शक्ति पाकिस्तान की वायुसेना के बराबर हो सकती है। वर्तमान में, भारतीय वायुसेना अपने पुराने लड़ाकू विमानों को सेवा से बाहर कर रही है, जबकि नए विमानों की खरीद की प्रक्रिया में देरी हो रही है। इससे उसकी ऑपरेशनल क्षमता बनाए रखना मुश्किल हो रहा है।
वर्तमान स्थिति के अनुसार, यदि वायुसेना के सभी निर्धारित प्रोजेक्ट समय पर पूरे होते हैं, तो 2035 तक इसकी शक्ति पाकिस्तान की वायुसेना के बराबर हो जाएगी। लेकिन यदि देरी होती है, जैसा कि अक्सर भारत में होता है, तो भारतीय वायुसेना की ताकत पाकिस्तान की वायुसेना से भी कम हो सकती है।
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रिपोर्ट में हुआ चौंकाने वाला खुलासा
इंडिया टुडे की एक नई रिपोर्ट में यह चिंता व्यक्त की गई है कि वर्ष 2035 तक भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों की संख्या में बड़ी कमी आ सकती है। अनुमान है कि उस समय भारतीय वायुसेना के पास लड़ाकू विमानों की संख्या पाकिस्तान की वायुसेना के बराबर रह सकती है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, देश की सुरक्षा के लिए वायुसेना के पास कम से कम 42 स्क्वाड्रन होने चाहिए, लेकिन वर्तमान में भारत के पास केवल 32 स्क्वाड्रन हैं। यदि नई खरीद और विकास योजनाएं समय पर पूरी नहीं हुईं, तो 2035 तक यह संख्या घटकर 25-27 स्क्वाड्रन रह सकती है। यह स्थिति अत्यधिक चिंताजनक हो सकती है।
लड़ाकू विमानों की कमी की आशंका
इंडिया टुडे की हालिया रिपोर्ट में वर्तमान और भविष्य की रक्षा खरीद के संदर्भ में गंभीर चेतावनी दी गई है। रिपोर्ट के अनुसार, 2035 तक भारतीय वायुसेना के पास केवल 25 लड़ाकू स्क्वाड्रन बचेंगे। इस दौरान, वर्तमान में सेवा में मौजूद जगुआर, मिग-29 और मिराज-2000 जैसे प्रमुख लड़ाकू विमानों का रिटायर होना वायुसेना में गंभीर कमी ला सकता है। इस प्रकार, भारतीय वायुसेना की स्क्वाड्रन संख्या पाकिस्तान की वायुसेना के बराबर हो सकती है, जो वर्तमान में 25 स्क्वाड्रन रखती है। यह स्थिति भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है।
लड़ाकू विमानों की कमी से बढ़ती चिंता
इस समय भारतीय वायुसेना लगभग 31 स्क्वाड्रन का संचालन कर रही है, जो इसकी स्वीकृत क्षमता 42 से काफी कम है। वर्तमान में, भारत मिग-21 विमानों को धीरे-धीरे अपने बेड़े से बाहर कर रहा है, क्योंकि ये फाइटर जेट अब पुराने हो चुके हैं और लगातार दुर्घटनाओं का शिकार हो रहे हैं। मिग-21 की दुर्घटनाओं में भारत ने कई बहादुर पायलटों को खोया है।
1970 से 1990 के दशक की शुरुआत तक भारतीय वायुसेना में जगुआर, मिग-29 और मिराज-2000 जैसे लड़ाकू विमानों को शामिल किया गया था, लेकिन अब ये भी अपनी उम्र पूरी कर चुके हैं और इन्हें जल्द ही रिटायर करने की आवश्यकता है। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग छह जगुआर, तीन मिग-29 और तीन मिराज-2000 स्क्वाड्रनों के रिटायर होने से भारतीय वायुसेना के 12 स्क्वाड्रन और कम हो जाएंगे। इस स्थिति में, 2035 तक वायुसेना के पास केवल 25 स्क्वाड्रन ही रहेंगे, जिससे देश की रक्षा तैयारियों को गंभीर खतरा हो सकता है।
क्या भारतीय वायुसेना की ताकत पाकिस्तान के बराबर हो सकती है?
यदि भारतीय वायुसेना के पास केवल 25 स्क्वाड्रन रह जाते हैं, तो यह पाकिस्तान एयरफोर्स के बराबर हो जाएगी। हालांकि, दोनों की गुणवत्ता में भिन्नता हो सकती है। यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि पाकिस्तान कब तक चीन से फिफ्थ जेनरेशन जेट जे-35 खरीदता है। यदि पाकिस्तान अगले 4-5 वर्षों में चीनी फिफ्थ जेनरेशन जेट हासिल कर लेता है, तो भारत के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण स्थिति बन सकती है।
हालांकि, पाकिस्तानी वायुसेना में भी कई पुराने लड़ाकू विमान हैं, जैसे एफ-16, जेएफ-17 (जो चीन के साथ मिलकर विकसित किया गया है), और मिराज III/V, जो अब अपनी उम्र पूरी कर चुके हैं। दूसरी ओर, भारतीय वायुसेना के पास राफेल, Su-30MKI और तेजस जैसे आधुनिक विमान हैं, जिनमें एडवांस एवियोनिक्स, स्टेल्थ क्षमताएं और नेटवर्क-केंद्रित युद्धक क्षमताएं मौजूद हैं, जो पाकिस्तान के पास नहीं हैं। इसलिए, संख्या में समानता होने के बावजूद, भारत की वायुसेना अपनी बेहतर तकनीक और लड़ाकू क्षमता के चलते पाकिस्तान पर बढ़त बनाए रख सकती है।