आमलकी एकादशी का महत्व
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष आमलकी एकादशी 10 मार्च 2025 को मनाई जा रही है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के साथ आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विशेष महत्व है। धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि इस दिन श्रद्धा और विश्वास के साथ व्रत रखने से सभी पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है। इसके अलावा, इस दिन जरूरतमंदों को अन्न और धन का दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
व्रत कथा का महत्व
आमलकी एकादशी के दिन व्रत करने के साथ-साथ व्रत कथा का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से इस कथा का श्रवण करता है, उसके सभी कष्ट दूर होते हैं और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है। इस कथा का श्रवण करने से व्रत सफल होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं आमलकी एकादशी की पौराणिक कथा।
आमलकी एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में वैदिक नगर नामक एक स्थान पर चंद्रवंशी राजा का शासन था। इस नगर के निवासी भगवान विष्णु के परम भक्त थे और प्रत्येक एकादशी का व्रत विधिपूर्वक करते थे। एक बार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी पर नगर के सभी लोग उपवास रखकर भगवान विष्णु की आराधना में लीन थे। उसी समय एक महापापी शिकारी वहां आ पहुंचा।
वह शिकारी चोरी और हिंसा जैसे बुरे कर्मों में लिप्त था, लेकिन जब उसने लोगों को व्रत रखते और भगवान विष्णु की कथा सुनते देखा, तो वह भी वहीं रुक गया। उसने भी पूरी रात जागकर कथा सुनी और व्रत का अनजाने में पालन कर लिया।
कुछ समय बाद शिकारी की मृत्यु हो गई। अपने पापों के कारण उसे नरक में जाना पड़ा, लेकिन एकादशी व्रत कथा सुनने और जागरण करने के कारण उसे पुण्य का फल मिला। अगले जन्म में वह राजा विदूरथ के घर पुत्र के रूप में जन्मा और उसका नाम वसुरथ रखा गया।
जब वसुरथ बड़ा हुआ, तो वह एक साहसी और धर्मपरायण राजा बना। एक बार वह जंगल में घूमते-घूमते रास्ता भटक गया और एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगा। उसी समय कुछ डाकुओं ने उस पर हमला कर दिया। आश्चर्यजनक रूप से, डाकुओं के सारे अस्त्र-शस्त्र निष्फल हो गए और राजा को कोई नुकसान नहीं हुआ।
जब राजा की नींद खुली, तो उसने देखा कि सभी डाकू मृत पड़े थे। वह यह देखकर हैरान रह गया। तभी आकाशवाणी हुई—
“हे राजन, पिछले जन्म में तुमने आमलकी एकादशी व्रत किया था और इस व्रत की कथा का श्रवण किया था। इसी पुण्य के फलस्वरूप आज भगवान विष्णु ने तुम्हारी रक्षा की है।”
इस रहस्य को जानकर राजा वसुरथ अत्यंत प्रसन्न हुआ और उसने अपने राज्य में आमलकी एकादशी व्रत को और अधिक श्रद्धा से मनाने का आदेश दिया।
व्रत का पूजन विधि
आमलकी एकादशी के दिन विधिपूर्वक व्रत और पूजा करने से जीवन में शुभता का संचार होता है। इस दिन भक्तों को निम्नलिखित विधि से पूजा करनी चाहिए—
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
- भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित करें।
- आंवले के वृक्ष की पूजा करें और इसके नीचे बैठकर भगवान विष्णु का स्मरण करें।
- विष्णु सहस्रनाम और आमलकी एकादशी व्रत कथा का पाठ करें।
- गरीब और जरूरतमंदों को अन्न और वस्त्र का दान करें।
- अगले दिन द्वादशी तिथि को व्रत का पारण करें।
आमलकी एकादशी का फल और लाभ
- इस व्रत के प्रभाव से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं।
- यह व्रत व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होता है।
- आमलकी एकादशी व्रत करने से धन, सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- यह व्रत पापों का नाश करता है और व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है।