नई दिल्ली। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए दृष्टिहीन लोगों के लिए न्यायिक सेवाओं में नए अवसर खोल दिए हैं। इस फैसले के अनुसार, अब दृष्टिहीन व्यक्ति भी न्यायाधीश बन सकते हैं। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति को उसकी दिव्यांगता के आधार पर न्यायिक सेवाओं से वंचित नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या कहता है?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि न्यायिक सेवाओं में दृष्टिहीन व्यक्तियों को समान अवसर मिलना चाहिए। इसके साथ ही, अदालत ने मध्यप्रदेश न्यायिक सेवा नियम को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया, क्योंकि यह दृष्टिहीन उम्मीदवारों को चयन प्रक्रिया में भाग लेने से रोक रहा था।
फैसले की मुख्य बातें:
- समान अवसर का अधिकार: दृष्टिहीन व्यक्तियों को भी न्यायिक सेवाओं में भाग लेने का पूरा अधिकार है।
- मध्यप्रदेश न्यायिक सेवा नियम रद्द: यह नियम दृष्टिहीन उम्मीदवारों को चयन प्रक्रिया में शामिल होने से रोक रहा था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक घोषित किया।
- न्यायिक सेवाओं में समावेशिता: सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि दृष्टिहीन उम्मीदवारों के साथ कोई भेदभाव न हो और वे भी न्यायपालिका में अपना योगदान दे सकें।
किसने दी थी चुनौती?
इस मामले को एक महिला द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। महिला का बेटा दृष्टिहीन था और वह न्यायिक सेवा में शामिल होना चाहता था। जब उसे मध्यप्रदेश न्यायिक सेवा नियम के तहत रोका गया, तो उसकी मां ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर न्याय की गुहार लगाई।
फैसले का प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से न केवल दृष्टिहीन उम्मीदवारों के लिए न्यायिक सेवाओं के दरवाजे खुल गए हैं, बल्कि यह दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों को भी मजबूत करता है। यह फैसला भारत में समान अवसर और समावेशिता को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम है।