यह मामला दमोह नगर पालिका के दिवंगत सफाईकर्मी से संबंधित है। याचिकाकर्ता विधवा सोमवती बाई वाल्मीकि ने नगर पालिका दमोह की ‘योगदान नहीं, तो पेंशन नहीं’ योजना को चुनौती दी, जिसके जवाब में हाई कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई।

HighLights
- दिवंगत सेवानिवृत्त सफाई कर्मी की विधवा के हक में आदेश
- एक माह के भीतर ब्याज सहित पेंशन का किया जाए भुगतान
- हाई कोर्ट की जबलपुर पीठ ने ग्रेच्युटी राशि पर भी दिया निर्देश
Newsstate24 प्रतिनिधि, जबलपुर : हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विवेक जैन की एकलपीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा कि 45 वर्षों की सेवा के बाद सेवानिवृत्त सफाई कर्मी को पेंशन की फूटी कौड़ी दिए बिना अलविदा नहीं किया जा सकता।
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कोर्ट ने नगर पालिका दमोह की ‘योगदान नहीं, तो पेंशन नहीं’ की परंपरा पर कड़ी फटकार लगाते हुए दिवंगत सफाई कर्मी की विधवा के हक में आदेश दिया कि एक माह के भीतर 6 प्रतिशत ब्याज सहित उनकी पेंशन का भुगतान किया जाए। इसके अलावा 12 प्रतिशत ब्याज सहित ग्रेच्युटी राशि भी प्रदान करने का निर्देश दिया गया।
याचिकाकर्ता दिवंगत सफाई कर्मी पुरुषोत्तम मेहता की विधवा सोमवती बाई वाल्मीकि की ओर से अधिवक्ता संजय कुमार शर्मा, असीम त्रिवेदी और रोहिणी प्रसाद शर्मा ने पक्ष रखा। उन्होंने तर्क किया कि नगर पालिका, दमोह के सभी तर्कों को नजरअंदाज किया जाना चाहिए क्योंकि ये सभी मनमानी की ओर इशारा करते हैं।
एक परिवार को भुखमरी की कगार पर खड़ा कर दिया
- हाई कोर्ट को बताया गया कि पुरुषोत्तम मेहता ने 1964 से 2009 तक नगर पालिका, दमोह में सफाई कर्मचारी के रूप में कार्य किया। सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें पेंशन या ग्रेज्युटी नहीं मिली, जिससे उनका परिवार भुखमरी के कगार पर पहुँच गया।
- मामला जब हाई कोर्ट में पहुँचा, तब याचिकाकर्ता की मृत्यु के बाद उनकी विधवा सोमवती बाई वाल्मीकि ने न्याय की मांग की। नगर पालिका का विवादास्पद तर्क था कि कर्मचारी ने पेंशन फंड में योगदान नहीं दिया।
- नगर पालिका ने यह भी दावा किया कि मध्य प्रदेश नगर पालिका पेंशन नियम, 1980 के अनुसार, पेंशन के लिए कर्मचारी का योगदान अनिवार्य है, जो मेहता ने नहीं दिया। इस वजह से वे पेंशन के लिए पात्र नहीं हैं।
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हाई कोर्ट ने सख्ती से प्रतिक्रिया देते हुए राहत प्रदान की
हाई कोर्ट ने नगर पालिका, दमोह के रुख को अनुचित ठहराते हुए स्पष्ट किया कि नियमों में कहीं भी कर्मचारी के योगदान का प्रावधान नहीं है। यदि योगदान आवश्यक था, तो नगर पालिका को वेतन से कटौती करनी चाहिए थी।
सेवानिवृत्ति के समय यह कहना कि ‘कर्मचारी ने योगदान नहीं दिया’ उनके अधिकारों का उल्लंघन है। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कानूनी बारीकियों को स्पष्ट करते हुए नगरपालिकाओं की संवेदनहीनता पर भी चिंता व्यक्त की।
पेंशन निधि में ‘डीम्ड’ सम्मिलन का अर्थ यह है कि कर्मचारी स्वतः पात्र होता है। हाई कोर्ट ने नगर पालिका के तर्कों को सेवा कानूनों के विपरीत बताते हुए स्पष्ट किया कि 1980 के नियमों में पेंशन निधि में कर्मचारी के योगदान का कोई प्रावधान नहीं है। यदि योगदान आवश्यक था, तो नियोक्ता का कर्तव्य था कि वह वेतन से कटौती करें।
हाई कोर्ट ने नगर पालिका द्वारा “भुगतान की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है” के तर्क को खारिज करते हुए कहा कि जब नगर पालिका ने पेंशन को स्वीकार ही नहीं किया, तो राज्य को दोष देना विधि विरुद्ध है। नगर पालिका यह तर्क तभी दे सकती थी जब वह पेंशन को स्वीकृत कर चुकी होती।
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