भारत की पारिवारिक व्यवस्था को वैश्विक स्तर पर सबसे उत्तम माना जाता है। यह बातें अयोध्या के रामलला मंदिर न्यास के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंददेव गिरि ने इंदौर में व्यक्त कीं। उन्होंने यह भी कहा कि गृहस्थ आश्रम सभी आश्रमों में सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि साधु-संन्यासी भी गृहस्थों पर निर्भर रहते हैं।
गृहस्थ आश्रम की श्रेष्ठता तभी बनी रहती है, जब वहां पवित्रता और प्रसन्नता का वातावरण हो। स्वामी जी ने स्वच्छता और पवित्रता के बीच के अंतर को स्पष्ट किया। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि एक फिल्म अभिनेत्री के कपड़े भले ही स्वच्छ हों, लेकिन मां का आंचल उससे कहीं अधिक पवित्र होता है।
“मैं” के स्थान पर “हम” की भावना रखने की प्रेरणा देते हुए स्वामी जी ने समन्वय परिवार इंदौर द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में कहा कि परिवार तभी खुशहाल रह सकता है जब हम एक-दूसरे के प्रति समर्पण और सुख-दुख बांटने की भावना रखें।
कार्यक्रम का संचालन जाल सभागृह में हुआ, जहां उपाध्यक्ष रामअवतार जाजू ने उपस्थित सभी का स्वागत किया। अशोक पुंडलिक और गोविंद खंडेलवाल ने स्वामी जी की रचित प्रार्थना का सामूहिक पाठ करवाया। स्वामी जी ने वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत पर जोर देते हुए कहा कि परिवार में आपसी स्नेह और सद्भाव का वातावरण जरूरी है, तभी हम सुख और शांति से जीवन यापन कर सकते हैं।
आज के समय में परिवारों में जो मतभेद और मनभेद दिखते हैं, उनके पीछे मानव की अपेक्षाएं और उपेक्षाएं ही मुख्य कारण होती हैं। रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में परिवारों की महानता का वर्णन किया गया है। भारत को ‘आर्यावृत’ कहा गया है, इसलिए इसे दुनिया भर में पवित्र भूमि के रूप में मान्यता प्राप्त है।
गृहस्थ आश्रम को सबसे श्रेष्ठ माना जाना चाहिए, क्योंकि अन्य सभी आश्रम इसी पर निर्भर करते हैं। यहां तक कि साधु-संन्यासी भी गृहस्थों पर निर्भर रहते हैं। आपका यह बड़प्पन है कि आप हमें इस प्रकार का मान-सम्मान देते हैं। परिवार तब ही संतुष्ट और पूर्ण कहलाएगा जब हम पवित्रता और प्रसन्नता के महत्व को समझेंगे।