कूनो नेशनल पार्क में छोड़े गए चीतों ने अब जंगल को छोड़कर रिहायशी क्षेत्र में कदम रख दिया है। इस स्थिति ने चीता प्रबंधन के लिए नई चुनौतियां उत्पन्न की हैं। चीतों की मौजूदगी से मानव-चीता द्वंद्व का खतरा भी बढ़ गया है। पार्क प्रशासन चीतों को वापस जंगल में लाने के लिए प्रयासरत है। []
Published: Wednesday, 26 March 2025 at 04:42 pm | Modified: Wednesday, 26 March 2025 at 04:42 pm | By: Kapil Sharma | 📂 Category: शहर और राज्य
कूनो नेशनल पार्क में छोड़े गए चीतों ने अब जंगल को छोड़कर रिहायशी क्षेत्र में कदम रख दिया है। इस स्थिति ने चीता प्रबंधन के लिए नई चुनौतियां उत्पन्न की हैं। चीतों की मौजूदगी से मानव-चीता द्वंद्व का खतरा भी बढ़ गया है। पार्क प्रशासन चीतों को वापस जंगल में लाने के लिए प्रयासरत है।
हाल ही में मादा चीता ज्वाला और उसके चार शावक रिहायशी क्षेत्र में पहुंच गए हैं। यदि ये आगे बढ़ते हैं तो राजस्थान की सीमा में प्रवेश कर सकते हैं। पार्क प्रशासन इस स्थिति को लेकर चिंतित है क्योंकि इससे ग्रामीणों और चीतों के बीच संघर्ष हो सकता है। जिन चीता मित्रों को ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए तैयार किया गया था, उनकी सक्रियता अभी तक दिखाई नहीं दी है।
बीते शनिवार से चीते वीरपुर जैसे आबादी वाले क्षेत्रों में रह रहे हैं और अब तेलीपुरा गांव के पास पहुंच चुके हैं। सोमवार रात को उनकी लोकेशन इसी गांव में मिली है। ग्रामीणों के साथ चीतों का आमना-सामना होने का एक वीडियो भी वायरल हो रहा है।
कूनो की ट्रैकिंग टीम और सामान्य वन मंडल के कर्मचारी चीतों की निगरानी कर रहे हैं। ज्वाला और उसके शावक पहली बार पार्क की सीमा से बाहर आए थे, लेकिन अगले दिन वे वापस लौट गए थे।
रविवार रात को चीतों को भैरोंपुरा गांव के आसपास देखा गया। जब मादा चीता ज्वाला के सामने एक बछड़ा आया, तो उसने शिकार की नीयत से हमला किया, लेकिन ग्रामीणों के पत्थर फेंकने से वह पीछे हट गई। ग्रामीणों को देखकर चीते डर गए। वर्तमान में कूनो नेशनल पार्क में कुल 17 चीते हैं।
चीता मित्रों की भूमिका इस समय अत्यंत महत्वपूर्ण है। कूनो नेशनल पार्क में 120 चीता मित्रों को प्रशिक्षण दिया गया था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनसे संवाद किया था। इनकी जिम्मेदारी ग्रामीणों को जागरूक करना और मानव-चीता द्वंद्व को रोकना है। लंबे समय तक बाड़े में रहने के कारण इनकी सक्रियता में कमी आई है।
ज्वाला और उसके शावकों ने पिछले चार दिनों में कोई जानवर नहीं मारा है। ग्रामीणों के पथराव के कारण वे बछड़े का शिकार भी नहीं कर पाए। इस स्थिति ने सवाल उठाया है कि क्या जंगल में चीते के लिए पर्याप्त भोजन उपलब्ध नहीं है, या लंबे समय तक बाड़े में रहने से उनके शिकार करने की क्षमता में कमी आई है।
चीता मित्रों की संख्या बढ़ाई जाएगी। थिरुकुरल आर, डीएफओ कूनो ने कहा कि लोगों को चीतों से डरने की आवश्यकता नहीं है। चीतों ने अब जंगल की ओर लौटना शुरू कर दिया है और अधिक संख्या में चीता मित्रों को तैयार किया जाएगा।