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छत्तीसगढ़ में फीस अधिनियम सिर्फ कागजों पर ही मौजूद, स्कूलों में अभिभावकों से धन वसूली की योजना तैयार

छत्तीसगढ़ उन कुछ राज्यों में शामिल है जहां शैक्षणिक संस्थानों के शुल्क को निर्धारित करने और नियंत्रित रखने के लिए फीस विनियमन अधिनियम 2020 लागू है। इस कानून के अंतर्गत विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों, जिसमें निजी स्कूल भी शामिल हैं, को नियमों के दायरे में लाया गया है। निजी स्कूल कितनी फीस लेंगे, इसकी जानकारी नहीं []

Published: Wednesday, 26 March 2025 at 04:53 pm | Modified: Wednesday, 26 March 2025 at 04:53 pm | By: Kapil Sharma | 📂 Category: शहर और राज्य

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छत्तीसगढ़ में फीस अधिनियम सिर्फ कागजों पर ही मौजूद, स्कूलों में अभिभावकों से धन वसूली की योजना तैयार

छत्तीसगढ़ उन कुछ राज्यों में शामिल है जहां शैक्षणिक संस्थानों के शुल्क को निर्धारित करने और नियंत्रित रखने के लिए फीस विनियमन अधिनियम 2020 लागू है। इस कानून के अंतर्गत विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों, जिसमें निजी स्कूल भी शामिल हैं, को नियमों के दायरे में लाया गया है।

निजी स्कूल कितनी फीस लेंगे, इसकी जानकारी नहीं दे रहे हैं। स्कूल शिक्षा विभाग के पोर्टल पर निजी स्कूलों से संबंधित जानकारी देनी होती है। लेकिन, यह पोर्टल बंद पड़ा है। शासन और प्रशासन केवल व्यवस्था बनाने के बाद भूल चुके हैं। अधिकारियों ने फीस विनियमन अधिनियम को केवल कागजों में ही जीवित रखा है।

एक अप्रैल से नया शैक्षणिक सत्र आरंभ हो रहा है। स्कूल शिक्षा विभाग को निजी स्कूलों से विभिन्न मदों में ली जा रही फीस संरचना को पोर्टल पर अपलोड करने की जिम्मेदारी थी, लेकिन सिस्टम के कारण अधिकारियों ने इसे कागजों में ही सीमित रखा है।

जिम्मेदारों ने इस सिस्टम को नष्ट कर दिया है और हर साल की तरह अभिभावकों को लूटने की योजना बना ली है। निजी स्कूल के संचालक भी अधिकारियों की खामोशी का लाभ उठाने में पीछे नहीं हैं। वे कितनी फीस लेंगे इसकी जानकारी नहीं दे रहे हैं और हर साल मनमाने ढंग से फीस बढ़ाने की तैयारी में हैं।

छत्तीसगढ़ में लागू फीस विनियमन अधिनियम के अनुसार हर जिले में फीस रेगुलेशन समिति का गठन होना चाहिए। निजी स्कूल नए सत्र में फीस में अधिकतम आठ प्रतिशत तक की वृद्धि कर सकते हैं। इससे ज्यादा बढ़ोतरी के लिए उन्हें अपने आय-व्यय का विवरण प्रस्तुत कर अनुमति लेनी होती है।

हालांकि प्रदेश में इसका पालन नहीं हो रहा है। यहां न तो फीस संरचना पारदर्शी हो पाई है और न ही कमेटी से अनुमति लेने की प्रक्रिया काम कर रही है। शासन-प्रशासन केवल व्यवस्था बनाकर भूल गए हैं।

प्रत्येक जिले में जिला फीस विनियामक समिति का गठन होना है, जिसमें कलेक्टर अध्यक्ष और जिला शिक्षा अधिकारी, एक शिक्षाविद्, एक कानूनविद् और अभिभावक शामिल होने चाहिए। लेकिन रायपुर जिले में इस समिति का कोई अता-पता नहीं है। अधिकारियों का कहना है कि समिति की अब तक कोई बैठक नहीं हुई है।

फीस के संबंध में कई अभिभावक शिक्षा विभाग में लिखित शिकायतें करते हैं। लेकिन इन शिकायतों का समाधान कभी नहीं होता। पालक संघ का कहना है कि हर साल प्रदेश के बड़े जिलों में 10 से 20 शिकायतें की जाती हैं, लेकिन इनका समाधान नहीं होता है। रायपुर जिले में पिछले या वर्तमान में कितनी शिकायतें हुई हैं, इस पर अधिकारी भी स्पष्ट नहीं हैं।

फीस अधिनियम के संबंध में जिला शिक्षा अधिकारी डॉ विजय खंडेलवाल ने चुप्पी साध रखी है। उन्हें यह भी नहीं पता कि जिले में समिति गठित है या नहीं। कलेक्टर डॉ गौरव सिंह ने कहा कि फीस निर्धारण समिति की एक बार भी बैठक नहीं हुई है और उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारी को इस संबंध में निर्देशित किया है।

वरिष्ठ शिक्षाविद् डॉ जवाहर सुरीसेट्टी का कहना है कि प्रदेश में फीस अधिनियम लागू है। हर साल निजी स्कूलों को आठ प्रतिशत तक फीस बढ़ाने की अनुमति है। यदि बढ़ोतरी आठ प्रतिशत से अधिक हो, तो डीईओ को सूचित करना होता है और समिति के सदस्य स्कूल का निरीक्षण कर निर्णय लेते हैं।

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