साल दर साल परीक्षाएं उत्तीर्ण करते हुए वह अब हाईस्कूल तक पहुंच चुकी है। अनेक वर्षों के अभ्यास के बाद उसकी लिखावट किसी आम बच्चे से किसी भी तरह कम नहीं है।

HighLights
- जन्म से ही दिव्यांग राखी नाग नौवीं कक्षा की परीक्षा दे रही है।
- उसकी लिखावट सामान्य बच्चों के बराबर है।
- माता-पिता ने गरीबी को शिक्षा में बाधा नहीं बनने दिया।
अनिमेष पाल, जगदलपुर। ‘हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं।’ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की इस कविता में मानव की अडिग दृढ़ता और कभी हार न मानने की भावना को बस्तर की आदिवासी बेटी राखी नाग ने साकार किया है।
सोमवार को राखी नौंवी कक्षा की परीक्षा देते हुए नानगुर के स्वामी आत्मानंद विद्यालय में मिली। राखी एक विशेष बच्ची है। जन्म से ही दिव्यांग होने के बावजूद उसकी शिक्षा के प्रति असीम उत्साह है। चूंकि उसके हाथ काम नहीं करते हैं, उसने पांव से लिखना शुरू कर दिया।
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साल दर साल वह परीक्षाएं उत्तीर्ण करते-करते अब हाईस्कूल तक पहुंच चुकी है। लगातार अभ्यास से उसने इतनी दक्षता हासिल कर ली है कि उसकी लिखावट सामान्य बच्चों से कम नहीं है। राखी का परिवार कैकागढ़ पंचायत के बेंगलुरु गांव में निवास करता है।
गरीबी नहीं बनी पढ़ाई में बाधा
उसके पिता धनसिंह नाग एक निजी गैस एजेंसी के लिए साइकिल से गांव-गांव गैस सिलेंडर की डिलीवरी करते हैं। उसकी माता चैती एक गृहिणी हैं और इमली, महुआ जैसी वनोपज के संग्रहण से घर का खर्च चलाने में मदद करती हैं।
ट्राइसिकल नहीं, भाई स्कूल छोड़ता है
विद्यालय के शिक्षक मांझी ने बताया कि बालिका दोनों हाथों और एक पांव से दिव्यांग है। उसका भाई उसे रोज साइकिल पर बिठाकर स्कूल लाता और ले जाता है। जिस ट्राइसिकल पर वह परीक्षा दे रही है, वह विद्यालय की है।
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उसने सरकार से ट्राइसिकल प्राप्त करने के लिए आवेदन किया था, लेकिन अभी तक उसे नहीं मिली है। ट्राइसिकल मिलने पर वह स्वतंत्र रूप से स्कूल आ-जा सकेगी। उसकी प्रतिभा अद्वितीय है। वह इतनी सारी कठिनाइयों के बावजूद जीवन की चुनौतियों का सामना कर रही है।