Bhalchandra Sankashti Chaturthi 2025: होली के उपरांत चैत्र मास की शुरुआत होती है। चैत्र माह में आने वाली संकष्टी चतुर्थी को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान श्री गणेश की विधिपूर्वक पूजा करने से भगवान गणेश सभी कष्टों को दूर करते हैं और इच्छित इच्छाएं पूर्ण करते हैं।
हर संकष्टी चतुर्थी का अपना विशेष महत्व होता है। इस वर्ष चैत्र माह की भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी कब है, इसकी सही तारीख, पूजा मुहूर्त और चंद्रोदय समय जानें।
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भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी 2025
चैत्र माह की भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी 17 मार्च 2025 को मनाई जाएगी, जोकि सोमवार के दिन है। इस दिन पूजा करने वाले भक्तों को भगवान शिव और गणेश जी दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी 2025
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 17 मार्च 2025 को रात 07:33 मिनट से प्रारंभ होकर 18 मार्च 2025 को रात 10:09 मिनट तक रहेगी।
- पूजा मुहूर्त – सुबह 9:29 – सुबह 10:59
- रात का मुहूर्त – शाम 5:00 – रात 8:00
- चंद्रोदय समय – रात 09:18
भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी देती है संकटों से मुक्ति
भालचंद्र का अर्थ है, जिनके मस्तक पर चंद्रमा विराजमान है। संकट से मुक्ति को संकष्टी कहते हैं। भगवान गणेश, जो ज्ञान के क्षेत्र में सर्वोच्च हैं, सभी विघ्नों को दूर करने के लिए पूजे जाते हैं। इसीलिए यह मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से सभी प्रकार के विघ्नों से मुक्ति मिल जाती है।
गणपति कैसे बने भालचंद्र?
गणेश जी के भालचंद्र स्वरूप के बारे में गणेश पुराण में एक कथा है। एक बार चंद्रमा ने गणपति जी के शरीर का उपहास किया, जिससे गणेश जी ने उन्हें शाप दे दिया कि तुम किसी के देखने योग्य नहीं रहोगे। देवगणों के अनुरोध पर गणेश जी ने अपने शाप को केवल भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष चतुर्थी तक सीमित कर दिया। गणेश जी ने कहा – केवल भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को तुम अदर्शनीय रहोगे, जबकि प्रत्येक मास की कृष्णपक्ष चतुर्थी को तुम्हारा मेरे साथ पूजन होगा। तुम मेरे ललाट पर स्थित रहोगे। इस प्रकार गजानन मस्तक पर चंद्रमा धारण कर भालचंद्र बन गए।
संकष्टी चतुर्थी में क्या खाना चाहिए?
संकष्टी चतुर्थी का उपवास कठोर होता है, जिसमें केवल फलों, जड़ें (जमीन के अंदर के पौधों का भाग) और वनस्पति उत्पादों का सेवन किया जाता है। संकष्टी चतुर्थी व्रत के दौरान साबूदाना खिचड़ी, आलू और मूँगफली श्रद्धालुओं का मुख्य आहार होते हैं। श्रद्धालु लोग चंद्रमा के दर्शन करने के बाद उपवास तोड़ते हैं।
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